Gyan ki dhara story
एक समय की बात है, एक छोटे से गांव में एक गुरु रहते थे। उनका नाम स्वर्गीय दयानंद जी था। वे बहुत ही ज्ञानी और आदर्शवादी थे। गांव के लोग उनके विचारों, शिक्षाओं और आदर्शों के लिए उन्हें बहुत सम्मान देते थे। वह बच्चों के बीच गांव के मंदिर में दिनभर के लिए शिक्षा प्रदान करते थे।
एक दिन, एक छोटा सा बच्चा गुरु के पास आया और पूछा, "गुरुजी, क्या ग्यान की धारा है?" गुरु ने उसे एक कहानी से समझाने का फैसला किया।
उन्होंने बच्चे से कहा, "बेटा, एक बार की बात है, एक गुरुकुल में कई छात्र रहते थे। उन्हें गुरु जी ने ध्यान और मन की शक्ति के बारे में पढ़ाया था। गुरु जी ने बच्चों से कहा कि ध्यान के माध्यम से हम आत्मा के साथ जुड़ सकते हैं और ज्ञान के स्रोत को प्राप्त कर सकते हैं।"
एक दिन, गुरु जी ने बच्चों को एक नदी के किनारे ले जाकर कहा, "देखो बच्चों, यह नदी एक बहुत गहरी धारा ले जाती है। जब
गुरु के शिक्षा बिना ज्ञान का अंधकार,
शास्त्र की प्रमाणिकता बिना हैं विचार।
श्रद्धा से जो सुने गुरु के वचनों को,
उन्हें प्राप्त होता है सद्गति का मार्ग सच्चो।
ज्ञान के प्रवाह में श्रद्धा ही अवश्यक,
गुरु की आज्ञाओं में जो रहे प्रवृत्ति सुनिश्चित।
वेद-शास्त्र का पाठ करे नियमित आत्मचिंतन,
श्रद्धा से जीवन में भरे प्रकाश का ज्ञान।
श्रद्धा विश्वास की पुष्टि, शक्ति का स्रोत है,
बिना श्रद्धा के गुरु की शिक्षा कुछ नहीं करती।
अपने मन में धरे गुरुवाक्यों की सार्थकता,
श्रद्धा बने सहारा आचार्यों की व्याख्याओं का।
श्रद्धा और गुरु, ये दोनों अद्वितीय हैं,
इनके सहारे जीवन में प्रगति होती हैं।
शास्त्र की शिक्षा गुरु से मिलती विवेक बुद्धि,
श्रद्धा के साथ बने संसार में व्याप्ति।
ज्ञानांगनी को प्रज्वलित कर,
अंधकार को हरा देने की चिंगारी।
ज्ञान की ध्वजा लहराएं,
मन को शक्ति और श्रद्धा से भरी।
अज्ञान के अंधकार को हटा,
ज्ञान की ज्योति से जगमगा दे।
ज्ञानवाणी से दिशाओं को प्रकाशित कर,
सबको सत्य और ब्रह्मचर्य का रास्ता दे।
ज्ञान की बातें सुनाकर जगाएं,
बुद्धि को विकासित और सुरमय बनाएं।
अज्ञानता के बंधन से मुक्ति दिलाएं,
मन में शांति, समृद्धि, और विजय चमकाएं।
ज्ञानांगनी को प्रज्वलित कर,
सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ाएं।
ज्ञानदीप से जगत को रोशन कर,
अज्ञानता के अंधकार को नष्ट कराएं।
ज्ञान का ज्योति सबको दिखाएं,
सच्चे और उज्ज्वल आनंद का संग्राम।
ज्ञानी बनकर जग को प्रेरित करें,
उद्धार का कार्य निभाएं, निर्मल आत्मा।
विद्या का अर्थ है किवी संशय, अधूरेपन और विपरीतता से रहित, द्रढ़ और पूर्ण बोध

Nice sir ji
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